दुनिया ख़त्म हो जाएगी... सब मर जाएंगे... पृथ्वी पर कोई भी जीव नहीं बचेगा... बचपन से ऐसी कई अफवाहें सुनते आए हैं. माया कैलेंडर के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को दुनिया ख़त्म होने वाली थी पर हम सभी बच गए.


जो बना है वो कभी न कभी तो नष्ट होगा ही. इसी तरह पृथ्वी का भी कभी न कभी विनाश होगा ही. कयामत/प्रलय के दिन की बात सभी धर्मों में की गई है और वैज्ञानिक भी इस तथ्य से सहमत हैं कि दुनिया का विनाश होगा.

कैसे पता चलेगा कि कब होगा धरती का विनाश?

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराए थे तब दुनियाभर के वैज्ञानिकों को लगा कि ऐसे हथियारों से कुछ मिनटों में ही दुनिया का ख़ात्मा संभव है. इस विचार के आने के बाद उन्होंने एक ऐसी घड़ी (डूम्स डे क्लॉक या कयामत की घड़ी) बनाने की सोची, जो दुनिया को उसके विध्वंस के बारे में आगाह करे.

15 वैज्ञानिकों के एक समूह, 'द बुलेटिन ऑफ़ द अटॉमिक साइंटिट्स' बनाया गया. 'कयामत की घड़ी' को आगे-पीछे करने का काम इन्हें सौंपा गया.


डूम्स डे क्लॉक या 'कयामत की घड़ी' एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जो इंसानी गतिविधियों के कारण दुनिया की तबाही की संभावना को बताती है. इस घड़ी में 12 बजने का मतलब है कि दुनिया का अंत किसी भी समय हो सकता है. 1947 में सबसे पहली बार 'कयामत की घड़ी' में समय को रात के 12 बजने से 7 मिनट पहले सेट किया गया था.

2018 में वैज्ञानिकों ने ये निर्णय लिया था कि कयामत की घड़ी को 12 बजने से 2 मिनट पहले रखा जाएगा. Huffington Post के अनुसार इस साल भी इस घड़ी में समय को वैज्ञानिकों ने 12 बजे से 2 मिनट पहले रखने का निर्णय लिया है. पिछले साल वैज्ञानिकों ने इस घड़ी में समय को 30 सेकेंड आगे बढ़ाया था.

'द बुलेटिन ऑफ़ द अटॉमिक साइंटिट्स' की प्रेसिडेंट Rachel Branson ने कहा,
ऐसा लग रहा है कि एक ख़तरनाक दुनिया हमारे लिए सामान्य बात होती जा रही है. इस बात को यूं ही स्वीकार नहीं किया जा सकता. इस कड़वी सच्चाई के मद्देनज़र इस साल भी घड़ी को मध्य रात्रि के क़रीब ही रखा जाएगा. घड़ी को 12 बजने के इतने क़रीब कभी नहीं रखा गया.

दुनिया विनाश के इतने क़रीब पहुंच गई है लेकिन हम अपनी गतिविधियों में कोई सुधार नहीं ला रहे हैं. अगर इसी तरह से चीज़ें चलती रही, तो शायद इस दुनिया का समय से पहले ही विनाश हो जाएगा.

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